कुटिया में राजभवन Questions and Answers-Karnataka 1st PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Vaibhav Chapter 16 कुटिया में राजभवन

 

Karnataka 1st PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Vaibhav Chapter 16 कुटिया में राजभवन

कुटिया में राजभवन Questions and Answers, Notes, Summary

I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिएः


1.सीता जी का मन कहाँ भाया?
उत्तर: सीता जी का मन कुटिया में भाया।


2.सीता जी के प्राणेश कौन थे?
उत्तर: सीता जी के प्राणेश सम्राट श्रीराम थे।


3.सीता जी कुटिया को क्या समझती हैं?
उत्तर:सीता जी कुटिया को राजभवन समझती हैं।


4.नवीन फल नित्य कहाँ मिला करते हैं?
उत्तर:डाली-डाली में नित्य नवीन फल मिला करते हैं।


5.सीता की गृहस्थी कहाँ जगी?
उत्तर: सीता जी की गृहस्थी वन में जगी है।


6.वधू बनकर कौन आयी है?
उत्तर:जानकी वधू बनकर आई है।


7.सीता की सखियाँ कौन हैं?
उत्तर:मुनि बालायें सीता जी की सखियाँ हैं।


II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिएः


1. सीता जी अपनी कुटिया में कैसे परिश्रम करती थीं?


उत्तर: प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘कुटिया में राजभवन’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त हैं। सीता जब वनवास जाने के लिए राजभवन छोड़कर श्रीराम और लक्ष्मण सहित वन में कुटिया बसाती है, वहाँ उसका काम करने के लिए कोई दासी नहीं होती। वह स्वयं पसीना बहाकर सारे गृह कार्य जैसे भोजन बनाना, कुटिया की सफाई, पानी लाना आदी करती है जिससे उसका ‘आत्म स्थैर्य बड़ता है और दूसरों पर निर्भर होने की आदत छूट जाती है। कुटिया में आकर उसे घर और परिवार के महत्व का पता चलता है।


2.सीता जी प्रकृति-सौंदर्य के बारे में क्या कहती हैं?


उत्तर: 
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘कुटिया में राजभवन’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त हैं। सीता जी प्रकृति-सौंदर्य के बारे में कहती हैं कि – यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे प्रकृति में रहने का, विचरण करने का अवसर मिला है। यहाँ की हरियाली, शुद्ध हवा, पशु-पक्षियों का कलरव, लता-फूल आदि मन को प्रसन्न-चित्त करने वाली प्रकृति की शोभा है। यह प्रकृति का मायालोक किसी राजभवन से कम नहीं।


3.सीता जी कुटिया में कैसे सुखी हैं?


उत्तर:प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘कुटिया में राजभवन’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त हैं। ‘सीता जी को कुटिया ही राजभवन की तरह लग रही है। क्योंकि उनके प्राणेश उनके साथ हैं, देवर लक्ष्मण भी सचिव की तरह प्रहरी बने हुए. है। इसके अलावा प्राकृतिक सौन्दर्य ने उनको मोह लिया है। सीताजी स्वावलम्बी बनी हुई हैं.। प्रकृति के कण-कण को सीता जी ने राजभवन के सुख-वैभव के रूप में अपना लिया है।


4.‘कुटिया में राजभवन’ कविता का आशय संक्षेप में लिखिए।


उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘कुटिया में राजभवन’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त हैं। ‘कुटिया में राजभवन’ इस कविता का आशय है- सीता जी वन में भी राजसुख भोगती हैं। श्रीरामचंद्र जी स्वयं सीता जी के साथ-साथ रहते हैं। देवर लक्ष्मण मंत्री के रूप में कार्य कर रहे हैं। यहाँ धन और राज-वैभव का कोई मूल्य नहीं है।


III. ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए:


1.औरों के हाथों यहाँ नहीं पलती हूँ,
अपने पैरों पर खड़ी आप चलती हूँ,
श्रमवारि-बिन्दु फल स्वास्थ्य-शुक्ति फलती हूँ
अपने अचल से व्यंजन आप झलती हूँ।


उत्तर: प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘कुटिया में राजभवन’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियों में सीता जी खुद फल-फूल लाकर उनसे खाना पकाती हैं सुखी और स्वस्थ जीवन का आनंद उठाती है।
स्पष्टीकरण : उक्त पंक्तियों में सीता जी अपने स्वावलंबन के बारे में कह रही हैं कि मैं यहाँ अपने पैरों पर खड़ी हूँ, दूसरों पर निर्भर नहीं हूँ। मेरे शरीर का वास्तविक आनंद तो परिश्रम से ही प्राप्त होता है। अपने हाथों से हवा स्वयं झलती हूँ।


2.कहता है कौन कि भाग्य ठगा है मेरा?
वह सुना हुआ भय दूर भगा है मेरा।
कुंछ करने में अब हाथ लगा है मेरा,
वन में ही तो गार्हस्थ्य जगा है मेरा।


उत्तर:प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य वैभव’ के ‘कुटिया में राजभवन’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त हैं।
संदर्भ : जब सीता जी प्रभु रामचन्द्र के साथ वन में कुटिया बनाकर रहती है, वन में एक साधारण नारी की तरह अपने परिवार की जिम्मेदारी निभाने का सौभाग्य पाती हैं।
स्पष्टीकरण : गृहस्थ जीवन का आनंद वन में अनुभव करते हुए सीता जी कहती हैं कि कौन कहता है कि हमारा भाग्य ठगा गया है? वास्तव में यहाँ हमारा भय मिट गया है। यहाँ रहकर कुछ न कुछ करने में मन लगता है। ऐसा लग रहा है कि वन में ही गृहस्थ जाग गया है।


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