Bade Ghar Ki Beti (बड़े घर की बेटी)- Textbook Sahitya Vaibhav Written Summary of Chapter Bade Ghar Ki Beti (बड़े घर की बेटी) In Hindi-1st PUC Hindi-Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद)-Class Series


BADE GHAR KI BETI COMPLETE SHORT & LONG SUMMARY




SHORT SUMMARY OF BADE GHAR KI BETI (बड़े घर की बेटी)


‘बड़े घर की बेटी’ हिंदी के प्रसिद्ध लेखक ‘मुंशी प्रेमचंद’ द्वारा लिखी एक प्रसिद्ध कहानी है। इस कहानी में ‘मुंशी प्रेमचंद’ ने संयुक्त परिवारों में होने वाली समस्याओं का चित्रण किया है। उन्होंने इस कहानी के माध्यम से यह बताने का प्रयत्न किया है कि संयुक्त परिवारों में जरा-जरा सी बात पर कलह हो जाती है, बात का बतंगड़ बन जाता है और फिर आपसी समझ-बूझ से बिगड़ती बात को संभाल भी लिया जाता है। ‘बड़े घर की बेटी’ कहानी में प्रेमचंद जी ने भारतीय संयुक्त परिवारों के मनोविज्ञान को बड़ी बारीकी से दिखाने का प्रयत्न किया है।

कहानी का मुख्य पात्र आनंदी है जो भूपसिंह की बेटी है जो एक रियासत के ताल्लुकेदार थे। आनंदी का विवाह गौरीपुर के जमींदार बेनी माधव सिंह के बड़े बेटे श्रीकंठ से होता है। एक दिन आनंदी का अपने मायके की बुराई करने अपने देवर लालबिहारी से झगड़ा हो जाता है तो वो नाराज होकर कोपभवन चली जाती है और अपने पति से देवर की शिकायत करती है। उसका पति श्रीकंठ क्रोधित होकर अपने भाई का मुंह ना देखने की कसम खाता है। परिवार में हो रहे क्लेश और झगड़े को देखने के लिए आसपास के लोग किसी ना किसी बहाने से घर में जमा हो जाते हैं। इन सब बातों से दुखी लाल बिहारी जाने लगता है। जाते-जाते लालबिहारी अपनी भाभी आनंदी से क्षमा मांगता है। यह देख कर उसकी भाभी आनंदी का दिल पिघल जाता है और वो अपने देवर लालबिहारी को क्षमा कर देती है। अंत में दोनों भाई श्रीकंठ और लालबिहारी आपस के मनमुटाव को भुलाकर कर गले मिल जाते हैं और सब कुछ पहले की तरह सामान्य हो जाता है। अंत में बेनी माधव और गांव के लोग यही कहते हैं कि बड़े घर की बेटियां ऐसी ही होती हैं।

इस कहानी के द्वारा लेखक ने अंत भला तो सब भला वाला आदर्श स्थापित किया है। उन्होंने आनंदी के माध्यम से एक सभ्य, सुसंस्कृत, रूपवती, गुणवती बड़े घर की बेटी के संस्कारों को दिखाया है। जिसने अपनी समझ बूझ और बुद्धिमत्ता से घर को टूटने से बचाया और दो भाइयों को एक दूसरे से अलग होने से बचाया।


BADE GHAR KI BETI LONG SUMMARY


इस कहानी के माध्यम से लेखक ने स्पष्ट किया है कि किसी भी घर में पारिवारिक शांति और सामंजस्य बनाए रखने में घर की स्त्रियों की अहम् भूमिका होती है। घर की स्त्रियों अपनी समझदारी से टूटते और बिखरते परिवारों को भी जोड़ सकती है। साथ की लेखक ने संयुक्त परिवारों की उपयोगिता को भी इस कहानी के माध्यम से सिद्ध किया है।

कहानी का सार इस प्रकार है-

बेनी माधव गौरीपुर के जमींदार और नंबरदार थे। बेनी माधव के दो बेटे थे। बड़े का नाम श्रीकंठ था। उसने बहुत दिनों के परिश्रम और उद्योग के बाद बी.ए. की डिग्री प्राप्त की थी और इस समय वह एक दफ़्तर में नौकर तथा शादीशुदा था। उसकी पत्नी का नाम आनंदी जो कि एक बड़े घर की बेटी थी। छोटा लड़का लाल बिहारी सिंह दोहरे बदन का सजीला जवान था। भरा हुआ मुखड़ा, चौड़ी छाती। भैंस का दो सेर ताजा दूध वह सवेरे उठकर पी जाता था। परन्तु श्रीकंठ शरीर और चेहरे से कांतिहीन थे। इसका कारण उनकी बी.ए. की पढ़ाई थी। बी.ए. की डिग्री को प्राप्त करने के लिए उन्होंने अपने शरीर और स्वास्थ्य की चिंता न की और इसी के परिणामस्वरूप वे अपने छोटे भाई से विपरीत दिखते थे।

बेनीमाधव की वर्तमान में आर्थिक स्थिति कुछ इतनी अच्छी नहीं थी। बेनीमाधव अपनी आधे से अधिक संपत्ति वकीलों की भेंट कर चुके थे। वर्तमान में उनकी आय एक हजार वार्षिक से अधिक न थी।
बेनीमाधव के पिता किसी समय में बड़े धन-धान्य से संपन्न व्यक्ति थे। उन्होंने ने अपने समय में गाँव में पक्का तालाब और मंदिर का निर्माण करवाया था।
आज उस तालाब और मंदिर की मरम्मत में भी मुश्किलें थी। आज केवल वे गाँव में एक कीर्ति स्तंभ अर्थात् केवल याद रखने वाली वस्तुओं बनकर रह गए थे। बेनीमाधव के पितामह द्वारा बनाए गए तालाब और मंदिर के लिए बेनीमाधव कुछ भी नहीं करते थे।

श्रीकंठ बी.ए. इस अंग्रेजी डिग्री के अधिपति होने पर भी पाश्चात्य सामजिक प्रथाओं के विशेष प्रेमी न थे, बल्कि वे बहुधा बड़े जोर से उसकी निंदा और तिरस्कार किया करते थे। वे प्राचीन सभ्यता का गुणगान उनकी प्रकृति का प्रधान अंग था। सम्मिलित कुंटुब के तो वे एक मात्र उपासक थे। आजकल स्त्रियों में मिलजुलकर रहने में जो अरुचि थी श्रीकंठ उसे जाति और समाज के लिए हानिकारक समझते थे।

इसलिए गाँव की स्त्रियाँ श्रीकंठ की निंदक थीं। कोई-कोई तो उन्हें अपना शत्रु समझने में भी संकोच नहीं करती थीं।

आनंदी स्वभाव से बड़ी अच्छी स्त्री थी। वह घर के सभी लोगों का सम्मान और आदर करती थी परंतु उसकी राय संयुक्त परिवार के बारे में अपने पति से ज़रा अलग थी। उसके अनुसार यदि बहुत कुछ समझौता करने पर भी परिवार के साथ निर्वाह करना मुश्किल हो तो अलग हो जाना ही बेहतर है।

एक दिन आनंदी अपने देवर के लिए मांस पका रही थी। बड़े घर की बेटी होने के कारण किफायत नहीं जानती थी इसलिए आनंदी ने हांडी का सारा घी मांस पकाने में उपयोग कर दिया जिसके कारण दाल में डालने के लिए घी नहीं बचा और इसी कारणवश देवर और भाभी में झगडा हो जाता है। घी की बात को लेकर लालबिहारी ने अपनी भाभी को ताना मार दिया कि जैसे उनके मायके में घी को नदियाँ बहती हैं और यही आनंदी के दुःख का कारण था क्योंकि आनंदी बड़े घर की बेटी थी उसके यहाँ किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी। और कहते हैं ना स्त्रियाँ गालियाँ सह लेती है, मार भी सह लेती है, पर उससे मैके की निंदा नहीं सही जाती।” आनंदी का दाल में घी न होने पर अपने देवर से कहा सुनी हो गई थी। देवर ने इतनी–सी बात पर आनंदी पर खडाऊँ फेंक मारा था। इसी बात को लेकर आनंदी की त्योरियाँ चढ़ी हुई थी और अब वह अपने पति के आने का इंतज़ार कर रही थी।

आनंदी से मिलने से पहले श्रीकंठ अपने भाई और पिता से मिल चुके थे और भाई ने श्रीकंठ को बताया कि आनंदी से कहे कि वे मुँह सँभालकर बात करें वर्ना एक दिन अनर्थ हो जाएगा। पिता ने भी श्रीकंठ से कहा कि बहू को कहे कि मर्दों के मुँह नहीं लगना चाहिए।

आनंदी से जब श्रीकंठ ने झगड़े का सारा हाल जाना तो क्रोध से श्रीकंठ की आँखें लाल हो उठी। अपने भाई द्वारा किया गया यह दुर्व्यवहार उन्हें अच्छा नहीं लगा और इस सब के कारण उन्होंने घर से अलग हो जाने का निर्णय लिया और अपने पिता को यह निर्णय सुना दिया कि अब इस घर में उनका निर्वाह नहीं हो सकता।

गाँव में कुछ कुटिल मनुष्य ऐसे भी थे जो बेनी माधव सिंह के संयुक्त परिवार और परिवार की नीतिपूर्ण गति से जलते थे उन्हें जब पता चला कि अपनी पत्नी की खातिर श्रीकंठ अपने पिता से लड़ने चला है तो कोई हुक्का पीने, कोई लगान की रसीद दिखाने के बहाने बेनी माधव सिंह के घर जमा होने लगे।

श्रीकंठ क्रोधित होने के कारण अपने पिता से सबके सामने लड़ पड़ते हैं। पिता नहीं चाहते थे कि घर की बात बाहर वालों को पता चले परंतु श्रीकंठ अनुभवी पिता की बातें नहीं समझ पाता और लोगों के सामने ही पिता से बहस करने लगता है।

लालबिहारी को जब यह पता चलता है कि उसके भाई उसका मुँह भी देखना नहीं चाहते तो उसे बड़ा दुःख पहुँचता है उसे अपनी गलती का अहसास हो चुका था। बड़े भाई ने जब यह कहा कि वे उसका मुँह भी नहीं देखना चाहते यह बात वह सहन न कर पाया और आनंदी के सामने घर छोड़ने की बात करने लगता है। अपने देवर के घर छोड़ने की बात पर आनंदी भी व्यथित हो उठती है अपने किए पर पश्चाताप करने लगी। वह स्वयं आगे बढ़कर अपने देवर को रोक कर दोनों भाइयों में सुलह करवा देती है। आनंदी की इस समझदारी पर बेनीमाधव पुलकित हो बोल उठते हैं कि बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं बिगड़ता हुआ काम भी बना लेती है। इस घटना को जिसने भी सुना वे सब आनंदी की उदारता को सराहने लगते हैं।

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